वैदिक पद्धति के अनुसार मंदिर वहां बनाना चाहिए जहां से पृथ्वी की चुम्बकीय तरंगे घनी हो कर जाती है.
- इन मंदिरों में गर्भ गृह में देवता की मूर्ती ऐसी जगह पर स्थापित की जाती है.
- इस मूर्ती के नीचे ताम्बे के पत्र रखे जाते है जो यह तरंगे अवशोषित करते है.
- इस प्रकार जो व्यक्ति रोज़ मंदिर जा कर इस मूर्ती की घडी के चलने की दिशा में प्रदक्षिणा करता है वह इस एनर्जी को अवशोषित कर लेता है.
- यह एक धीमी प्रक्रिया है और नियमित करने से व्यक्ति की सकारात्मक शक्ति का विकास होता है.
- मंदिर तीन तरफ से बंद रहता है जिससे ऊर्जा का असर बढ़ता है.
- मूर्ती के सामने प्रज्वलित दीप उष्मा की ऊर्जा का वितरण करता है.
- घंटानाद से मन्त्र उच्चार से ध्वनी बनती है जो ध्यान केन्द्रित करती है.
- समूह में मंत्रोच्चार करने से व्यक्तिगत समस्याएँ भूल जाती है.
- फूलों , कर्पुर और धुप की सुगंध से तनाव से मुक्ति हो कर मानसिक शान्ति मिलती है.
- तीर्थ जल मंत्रोच्चार से उपचारित होता है. चुम्बकीय ऊर्जा के घनत्व वाले स्थान में स्थित ताम्रपत्र को स्पर्श करता है और यह तुलसी कपूर मिश्रित होता है. इस प्रकार यह दिव्य औषधि बन जाता है.
- तीर्थ लेते समय वयुमुद्रा बना ली जाती है. देने वाला भी मन्त्र उच्चारित करता है, फिर पिने के बाद हाथों को शिखा यानी सहस्त्रार , आँखों पर स्पर्श करते है.
- मंदिर में जाते समय वस्त्र यानी सिर्फ रेशमी पहनने का चालान इसीसे शुरू हुआ क्योंकि ये उस ऊर्जा के अवशोषण में सहायक होते है.
- मंदिर जाते समय महिलाओं को गहने पहनने चाहिए. धातु के बने ये गहने ऊर्जा अवशोषित कर उस स्थान और चक्र को पहुंचाते है जैसे गले , कलाई , सिर आदि .
- नए गहनों और वस्तुओं को भी मंदिर की मूर्ती के चरणों से स्पर्श कराकर फिर उपयोग में लाने का रिवाज है जो अब हम समझ सकते है की क्यों है .
- मंदिर का कलश पिरामिड आकृति का होता है जो ब्रम्हांडीय ऊर्जा तरंगों को अवशोषित कर उसके नीचे बैठने वालों को लाभ पहुंचाता है.
- हर एक सामान्य व्यक्ति को उच्च वैज्ञानिक कारण समझ में आये ऐसा आवश्यक नहीं इसलिए हमारे सभी रीती रिवाज धर्म और बड़ों के आदेश के रूप में निभाये जाते है.
source:सामान्य ज्ञान दिग्दर्शन
- इन मंदिरों में गर्भ गृह में देवता की मूर्ती ऐसी जगह पर स्थापित की जाती है.
- इस मूर्ती के नीचे ताम्बे के पत्र रखे जाते है जो यह तरंगे अवशोषित करते है.
- इस प्रकार जो व्यक्ति रोज़ मंदिर जा कर इस मूर्ती की घडी के चलने की दिशा में प्रदक्षिणा करता है वह इस एनर्जी को अवशोषित कर लेता है.
- यह एक धीमी प्रक्रिया है और नियमित करने से व्यक्ति की सकारात्मक शक्ति का विकास होता है.
- मंदिर तीन तरफ से बंद रहता है जिससे ऊर्जा का असर बढ़ता है.
- मूर्ती के सामने प्रज्वलित दीप उष्मा की ऊर्जा का वितरण करता है.
- घंटानाद से मन्त्र उच्चार से ध्वनी बनती है जो ध्यान केन्द्रित करती है.
- समूह में मंत्रोच्चार करने से व्यक्तिगत समस्याएँ भूल जाती है.
- फूलों , कर्पुर और धुप की सुगंध से तनाव से मुक्ति हो कर मानसिक शान्ति मिलती है.
- तीर्थ जल मंत्रोच्चार से उपचारित होता है. चुम्बकीय ऊर्जा के घनत्व वाले स्थान में स्थित ताम्रपत्र को स्पर्श करता है और यह तुलसी कपूर मिश्रित होता है. इस प्रकार यह दिव्य औषधि बन जाता है.
- तीर्थ लेते समय वयुमुद्रा बना ली जाती है. देने वाला भी मन्त्र उच्चारित करता है, फिर पिने के बाद हाथों को शिखा यानी सहस्त्रार , आँखों पर स्पर्श करते है.
- मंदिर में जाते समय वस्त्र यानी सिर्फ रेशमी पहनने का चालान इसीसे शुरू हुआ क्योंकि ये उस ऊर्जा के अवशोषण में सहायक होते है.
- मंदिर जाते समय महिलाओं को गहने पहनने चाहिए. धातु के बने ये गहने ऊर्जा अवशोषित कर उस स्थान और चक्र को पहुंचाते है जैसे गले , कलाई , सिर आदि .
- नए गहनों और वस्तुओं को भी मंदिर की मूर्ती के चरणों से स्पर्श कराकर फिर उपयोग में लाने का रिवाज है जो अब हम समझ सकते है की क्यों है .
- मंदिर का कलश पिरामिड आकृति का होता है जो ब्रम्हांडीय ऊर्जा तरंगों को अवशोषित कर उसके नीचे बैठने वालों को लाभ पहुंचाता है.
- हर एक सामान्य व्यक्ति को उच्च वैज्ञानिक कारण समझ में आये ऐसा आवश्यक नहीं इसलिए हमारे सभी रीती रिवाज धर्म और बड़ों के आदेश के रूप में निभाये जाते है.
source:सामान्य ज्ञान दिग्दर्शन
मंदिर जाने का वैज्ञानिक महत्व
Reviewed by naresh
on
Saturday, September 05, 2015
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