चॉकलेट टॉफी या फिर चुइंग गम इनके बिना तो अपनी दुनिया ही पूरी नहीं होती है। सही कह रहे हैं न दोस्तों हम। पर क्या आप जानते हैं, ये चुइंग गम जिसे दिन में कम से कम दो या कभी-कभी तीन तो हम खा ही लेते हैं, का एक और रूप भी है, बबल गम। इसके बबल बनाना, कितना अच्छा लगता है न।
ऐसे बनी चुइंम गम
चुइंग गम एक विशेष प्रकार के पेड़ के दूध से बनती है। इसे टेस्ट देने के लिए फ्लेवर और शुगर बाद में मिलाया जाता है। चुइंग गम के स्वाद से दुनिया को परिचित कराने वाले व्यक्ति का नाम है थॉमस एडम्स। न्यू जर्सी का ये व्यापारी सापोडिला नाम के पेड़ से प्राप्त दूध से सिंथेटिक रबर बनाता था, जिनसे वो खिलौने, मास्क, बरसाती जूते और साइकिल के टायर बनाता था। वर्ष १८६९ के एक दिन रबर के एक टुकड़े को उठाकर अपने मुंह में डाला और चबाने लगा। रबर का एक स्वाद एडम्स को अच्छा लगा। उसने सोचा क्यों न इसमें कुछ फ्लेवर मिलाया जाए। अपनी इस सोच को वो सच्चई में बदलने के लिए जुट गया और फरवरी १८७१ में चुइंग गम की पहली फैक्ट्री अस्तित्व में आई। १८७१ में ही एडम्स ने इसका पेटेंट अपने नाम करवाया। पहले इसका नाम ‘एडम्स न्यूयॉर्क गम’ रखा गया था, जो १८८८ तक आते-आते ‘टूटी-फ्रूटी’ बन गई, ये पहली चुइंग गम थी जो वेंडिग मशीन में मिलती थी।
मिलाई खुशबू भी
ये चुइंग गम मीठी होती थी, पर इसमें किसी तरह की कोई खुशबू नहीं होती थी। तब उत्तरी अमेरिका के एक डेंटिस्ट विलियम रीगल ने इसके स्वरूप और स्वाद में थोड़ा और सुधार किया। इसमें अलग-अलग तरह के फूल और फलों की खुशबू को मिलाकर बाजार में उतारा।
इसके बाद डॉक्टर सी मैन ने चुइंग गम में ‘पैपासीन’ नामक पदार्थ मिलाया और इसे और भी सुगंधित बना दिया। ‘पैपासीन’ न सिर्फ एक सुगंधित पदार्थ था, बल्कि यह पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद भी था।
पूरी दुनिया में छा गई
१९क्क् के आस-पास ये पूरी दुनिया में मशहूर हो गई। इंग्लैंड, यूरोप और एशिया में लोग इसके दीवाने हो गए। एक समय इसकी लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ चुकी थी कि विश्व बाजार में अन्य चॉकलेट की बिक्री में भारी गिरावट उत्पन्न हो गई। समय के साथ-साथ चुइंग गम नए-नए स्वादों, सुगंधों व आकार-प्रकार में बनने लगी। आज बाजार विभिन्न किस्मों की चुइंग गम से अटे पड़े हैं।
हुआ बदलाव भी
पहले ‘सापोडिला’ से चुइंग गम बनाई जाती थी, पर आजकल चुइंग गम निर्माण के लिए ‘गुड़ा सिपैक’ नामक प्रजाति के वृक्षों व लताओं के गोंद का इस्तेमाल किया जाता है। पहले इसे हाथ से बनाया जाता था, अब इसे बनाने के लिए आधुनिकतम तकनीक के विशाल संयंत्र स्थापित किए जाते हैं। इन संयंत्रों में पूर्ण वैज्ञानिक ढंग से बड़े पैमाने पर चुइंग गम का निर्माण किया जाता है।
यूं बनता है
चुइंग गम बनाने के लिए सिपैक के कच्चे गोंद, सुगंध तथा अन्य विभिन्न पदार्थो का मिश्रण तैयार किया जाता है फिर विशाल मशीनों द्वारा औटाया (खूब मिलाया ) जाता है। बाद में यह पदार्थ एक लम्बी छड़ की शक्ल में तैयार हो जाता है। तब इसे गोल, चौकोर, तिकोना आदि वांछित आकारों में मशीनों के जरिए काट लिया जाता है। चुइंग गम में ताजगी और स्वाद को बनाए रखने के लिए पैकिंग वायु रोधी (एअर टाइट) कागजों में सील की जाती है।
हम हैं अव्वल
चुइंग गम का ईजाद भले ही अमेरिका में किया गया होगा, पर चुइंग गम के संसार में भारत का राज चलता है। यहां कई कम्पनियां उच्च कोटि की चुइंग गम का निर्माण करती हैं और साथ ही विदेशों में निर्यात भी करती हैं।
बड़े काम की
वायुयान के यात्रियों को वायु-दाब तथा अन्य असुविधाओं से बचाव की दृष्टि से उम्दा किस्म की चुइंग गम दी जाती हैं। मुंह की बदबू को दूर करने व सांसों में सुगंध बनाए रखने के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है। इसे चबाने से दांतो व जबड़ों का अच्छा व्यायाम हो जाता है। चिकित्सकों का मत है कि अधिक मात्रा में व दिन भर चुइंग गम खाना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक सिद्ध हो सकता है। इसलिए चुइंग गम का सीमित उपयोग ही बेहतर है।
source:http://www.bhaskar.com/article/
ऐसे बनी चुइंम गम
चुइंग गम एक विशेष प्रकार के पेड़ के दूध से बनती है। इसे टेस्ट देने के लिए फ्लेवर और शुगर बाद में मिलाया जाता है। चुइंग गम के स्वाद से दुनिया को परिचित कराने वाले व्यक्ति का नाम है थॉमस एडम्स। न्यू जर्सी का ये व्यापारी सापोडिला नाम के पेड़ से प्राप्त दूध से सिंथेटिक रबर बनाता था, जिनसे वो खिलौने, मास्क, बरसाती जूते और साइकिल के टायर बनाता था। वर्ष १८६९ के एक दिन रबर के एक टुकड़े को उठाकर अपने मुंह में डाला और चबाने लगा। रबर का एक स्वाद एडम्स को अच्छा लगा। उसने सोचा क्यों न इसमें कुछ फ्लेवर मिलाया जाए। अपनी इस सोच को वो सच्चई में बदलने के लिए जुट गया और फरवरी १८७१ में चुइंग गम की पहली फैक्ट्री अस्तित्व में आई। १८७१ में ही एडम्स ने इसका पेटेंट अपने नाम करवाया। पहले इसका नाम ‘एडम्स न्यूयॉर्क गम’ रखा गया था, जो १८८८ तक आते-आते ‘टूटी-फ्रूटी’ बन गई, ये पहली चुइंग गम थी जो वेंडिग मशीन में मिलती थी।
मिलाई खुशबू भी
ये चुइंग गम मीठी होती थी, पर इसमें किसी तरह की कोई खुशबू नहीं होती थी। तब उत्तरी अमेरिका के एक डेंटिस्ट विलियम रीगल ने इसके स्वरूप और स्वाद में थोड़ा और सुधार किया। इसमें अलग-अलग तरह के फूल और फलों की खुशबू को मिलाकर बाजार में उतारा।
इसके बाद डॉक्टर सी मैन ने चुइंग गम में ‘पैपासीन’ नामक पदार्थ मिलाया और इसे और भी सुगंधित बना दिया। ‘पैपासीन’ न सिर्फ एक सुगंधित पदार्थ था, बल्कि यह पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद भी था।
पूरी दुनिया में छा गई
१९क्क् के आस-पास ये पूरी दुनिया में मशहूर हो गई। इंग्लैंड, यूरोप और एशिया में लोग इसके दीवाने हो गए। एक समय इसकी लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ चुकी थी कि विश्व बाजार में अन्य चॉकलेट की बिक्री में भारी गिरावट उत्पन्न हो गई। समय के साथ-साथ चुइंग गम नए-नए स्वादों, सुगंधों व आकार-प्रकार में बनने लगी। आज बाजार विभिन्न किस्मों की चुइंग गम से अटे पड़े हैं।
हुआ बदलाव भी
पहले ‘सापोडिला’ से चुइंग गम बनाई जाती थी, पर आजकल चुइंग गम निर्माण के लिए ‘गुड़ा सिपैक’ नामक प्रजाति के वृक्षों व लताओं के गोंद का इस्तेमाल किया जाता है। पहले इसे हाथ से बनाया जाता था, अब इसे बनाने के लिए आधुनिकतम तकनीक के विशाल संयंत्र स्थापित किए जाते हैं। इन संयंत्रों में पूर्ण वैज्ञानिक ढंग से बड़े पैमाने पर चुइंग गम का निर्माण किया जाता है।
यूं बनता है
चुइंग गम बनाने के लिए सिपैक के कच्चे गोंद, सुगंध तथा अन्य विभिन्न पदार्थो का मिश्रण तैयार किया जाता है फिर विशाल मशीनों द्वारा औटाया (खूब मिलाया ) जाता है। बाद में यह पदार्थ एक लम्बी छड़ की शक्ल में तैयार हो जाता है। तब इसे गोल, चौकोर, तिकोना आदि वांछित आकारों में मशीनों के जरिए काट लिया जाता है। चुइंग गम में ताजगी और स्वाद को बनाए रखने के लिए पैकिंग वायु रोधी (एअर टाइट) कागजों में सील की जाती है।
हम हैं अव्वल
चुइंग गम का ईजाद भले ही अमेरिका में किया गया होगा, पर चुइंग गम के संसार में भारत का राज चलता है। यहां कई कम्पनियां उच्च कोटि की चुइंग गम का निर्माण करती हैं और साथ ही विदेशों में निर्यात भी करती हैं।
बड़े काम की
वायुयान के यात्रियों को वायु-दाब तथा अन्य असुविधाओं से बचाव की दृष्टि से उम्दा किस्म की चुइंग गम दी जाती हैं। मुंह की बदबू को दूर करने व सांसों में सुगंध बनाए रखने के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है। इसे चबाने से दांतो व जबड़ों का अच्छा व्यायाम हो जाता है। चिकित्सकों का मत है कि अधिक मात्रा में व दिन भर चुइंग गम खाना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक सिद्ध हो सकता है। इसलिए चुइंग गम का सीमित उपयोग ही बेहतर है।
source:http://www.bhaskar.com/article/
किस्सा चुइंग गम का
Reviewed by naresh
on
Saturday, March 17, 2012
Rating:
धन्यावाद
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