अर्जुन ने कहा श्रीकृष्ण,जो कुछ कहना था वह तो महाराज युधिष्ठिर कह चुके हैं। लेकिन आपकी बातें सुनकर मुझे ऐसा लग रहा है कि धृतराष्ट्र के लोभ और मोह के कारण आप संधि होना सहज नहीं समझते। लेकिन यदि कोई काम ठीक रीति से किया जाता है तो सफल भी हुआ जा सकता है। इसलिए आप कुछ ऐसा करें कि शत्रुओं से संधि हो जाए।
आप जो उचित समझें और जिसमें पाण्डवों का हित हो, वही काम जल्दी आरंभ कर दीजिए। हमें आगे जो कुछ करना हो, वह भी बता दें। श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन तुम जो कुछ कह रहे हो ठीक है। मैं भी वही काम करूंगा। दुर्योधन धर्म और लोक दोनों ही को तिलांजली देकर स्वेच्छाचारी हो गया है। ऐसे कर्मों से उसे पश्चाताप भी नहीं होता। उसके सलाहकार भी कुमति को बढ़ावा देने वाले हैं। नकुल ने कहा- धर्मराज ने आपसे कई बातें कहीं हैं। वे सब आपने सुन ही ली हैं।
भीमसेन ने भी संधि के लिए कहकर फिर अपना बाहुबल भी आपको सुना दिया। श्रीकृष्ण ये तो हम और आप दोनों ही जानते हैं कि वनवास और अज्ञातवास के समय हमारा विचार दूसरा था और अब दूसरा है। वन में रहते समय हमारा राज्य में अनुराग नहीं था। आप कौरवों की सभा में जाकर पहले तो संधि की ही बात करें, फिर युद्ध की धमकी दें। मुझे लगता है आपके कहने पर भीष्म और विदुर आदि दुष्ट दुर्योधन को ये बात समझा पाएंगे कि संधि कर लेना ही उसके लिए अच्छा है।
सहदेव ने कहा- महाराज ने जो बात कही है, वह तो सनातन धर्म ही है, लेकिन आप तो ऐसा प्रयत्न करें जिससे युद्ध ही हो। यदि कौरव लोग संधि करना चाहें तो भी आप उनके साथ युद्ध होने का ही रास्ता निकालें। सात्य ने कहा- महामति सहदेव ने बहु्रत ठीक कहा है इनका और मेरा कोप तो दुर्योधन का वध करके ही शांत होगा। सात्य कि के ऐसा कहते ही वहां बैठे हुए सब योद्धा भयंकर सिंहनाद करने लगे।
तभी द्रोपदी ने सहदेव और सात्य की प्रशंसा कर रोते हुए कहा- धर्मज्ञ मधुसूदन! दुर्योधन ने जिस क्रुरता से पांडवों को राजसुख से वंचित किया है वह तो आपको मालूम ही है। संजय को राजा धृतराष्ट्र ने एकांत में आपको जो अपना विचार सुनाया है वो भी आप अच्छी तरह जानते हैं। पांडव लोग दुर्योधन का रण में ही अच्छे से मुकाबला कर सकते हैं।
source:http://religion.bhaskar.com/
आप जो उचित समझें और जिसमें पाण्डवों का हित हो, वही काम जल्दी आरंभ कर दीजिए। हमें आगे जो कुछ करना हो, वह भी बता दें। श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन तुम जो कुछ कह रहे हो ठीक है। मैं भी वही काम करूंगा। दुर्योधन धर्म और लोक दोनों ही को तिलांजली देकर स्वेच्छाचारी हो गया है। ऐसे कर्मों से उसे पश्चाताप भी नहीं होता। उसके सलाहकार भी कुमति को बढ़ावा देने वाले हैं। नकुल ने कहा- धर्मराज ने आपसे कई बातें कहीं हैं। वे सब आपने सुन ही ली हैं।
भीमसेन ने भी संधि के लिए कहकर फिर अपना बाहुबल भी आपको सुना दिया। श्रीकृष्ण ये तो हम और आप दोनों ही जानते हैं कि वनवास और अज्ञातवास के समय हमारा विचार दूसरा था और अब दूसरा है। वन में रहते समय हमारा राज्य में अनुराग नहीं था। आप कौरवों की सभा में जाकर पहले तो संधि की ही बात करें, फिर युद्ध की धमकी दें। मुझे लगता है आपके कहने पर भीष्म और विदुर आदि दुष्ट दुर्योधन को ये बात समझा पाएंगे कि संधि कर लेना ही उसके लिए अच्छा है।
सहदेव ने कहा- महाराज ने जो बात कही है, वह तो सनातन धर्म ही है, लेकिन आप तो ऐसा प्रयत्न करें जिससे युद्ध ही हो। यदि कौरव लोग संधि करना चाहें तो भी आप उनके साथ युद्ध होने का ही रास्ता निकालें। सात्य ने कहा- महामति सहदेव ने बहु्रत ठीक कहा है इनका और मेरा कोप तो दुर्योधन का वध करके ही शांत होगा। सात्य कि के ऐसा कहते ही वहां बैठे हुए सब योद्धा भयंकर सिंहनाद करने लगे।
तभी द्रोपदी ने सहदेव और सात्य की प्रशंसा कर रोते हुए कहा- धर्मज्ञ मधुसूदन! दुर्योधन ने जिस क्रुरता से पांडवों को राजसुख से वंचित किया है वह तो आपको मालूम ही है। संजय को राजा धृतराष्ट्र ने एकांत में आपको जो अपना विचार सुनाया है वो भी आप अच्छी तरह जानते हैं। पांडव लोग दुर्योधन का रण में ही अच्छे से मुकाबला कर सकते हैं।
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द्रोपदी भी चाहती थी महाभारत का युद्ध हो
Reviewed by naresh
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Tuesday, March 06, 2012
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