हनुमानजी ने रावण से कहा मैं तुम्हारी प्रभुता को खूब जानता हूं। मुझे भूख लगी थी, मैंने फल खाए और वानर स्वभाव के कारण वृक्ष तोड़े। कुमार्ग चलने वाले राक्षस जब मुझे मारने लगे। तब जिन्होंने मुझे मारा, उनको मैंने भी मारा। उस पर तुम्हारे पुत्र ने मुझको बांध लिया। मुझे अपने बांधे जाने की कुछ भी लज्जा नहीं है।
हनुमानजी की बात सुनते ही रावण को गुस्सा आ गया। सभी राक्षस उन्हें मारने दौड़े। उसी समय विभीषण वहां पहुंचे। उन्होंने रावण से कहा कि दूत को मारना नहीं चाहिए। ये नीति के विरूद्ध है। इन्हें कोई दूसरा दंड दिया जाए तो ठीक रहेगा। यह सुनकर रावण बोला अच्छा तो, बंदर को अंग-भंग कर लौटा दिया जाए। मैं सबको समझाकर कहता हूं कि बंदर की ममता पूंछ पर होती है।
अत: तेल में कपड़ा डुबोकर उसे इसकी पूंछ में बांधकर फिर आग लगा दो। जब बिना पूंछ का यह बंदर वहां जाएगा, तब यह मुर्ख अपने मालिक को साथ ले आएगा। जिनकी इसने बहुत बड़ाई की है। मैं भी उसकी प्रभुता तो देखूं। रावण की बात सुनकर राक्षस उनकी पूंछ में आग लगाने की तैयारी करने लगे। नगर का सारा घी, तेल खत्म कर दिया।
हनुमानजी ने ऐसा खेल किया कि पूंछ बढ़ गई। नगरवासी लोग तमाशा देखने आए। सारे लोग तालियां पीट रहे थे। हनुमानजी को नगर में घुमाकर उनकी पूंछ में आग लगा दी गई। तब हनुमानजी तुरंत ही बहुत छोटे हो गए। बंधन से निकलकर सोने की अटारियों पर जा चढ़े। उन्होंने फिर अपनी देह को बढ़ा बना लिया और नगर में आग लगाने लगा।
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हनुमानजी की बात सुनते ही रावण को गुस्सा आ गया। सभी राक्षस उन्हें मारने दौड़े। उसी समय विभीषण वहां पहुंचे। उन्होंने रावण से कहा कि दूत को मारना नहीं चाहिए। ये नीति के विरूद्ध है। इन्हें कोई दूसरा दंड दिया जाए तो ठीक रहेगा। यह सुनकर रावण बोला अच्छा तो, बंदर को अंग-भंग कर लौटा दिया जाए। मैं सबको समझाकर कहता हूं कि बंदर की ममता पूंछ पर होती है।
अत: तेल में कपड़ा डुबोकर उसे इसकी पूंछ में बांधकर फिर आग लगा दो। जब बिना पूंछ का यह बंदर वहां जाएगा, तब यह मुर्ख अपने मालिक को साथ ले आएगा। जिनकी इसने बहुत बड़ाई की है। मैं भी उसकी प्रभुता तो देखूं। रावण की बात सुनकर राक्षस उनकी पूंछ में आग लगाने की तैयारी करने लगे। नगर का सारा घी, तेल खत्म कर दिया।
हनुमानजी ने ऐसा खेल किया कि पूंछ बढ़ गई। नगरवासी लोग तमाशा देखने आए। सारे लोग तालियां पीट रहे थे। हनुमानजी को नगर में घुमाकर उनकी पूंछ में आग लगा दी गई। तब हनुमानजी तुरंत ही बहुत छोटे हो गए। बंधन से निकलकर सोने की अटारियों पर जा चढ़े। उन्होंने फिर अपनी देह को बढ़ा बना लिया और नगर में आग लगाने लगा।
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क्यों लगाई हनुमानजी ने लंका में आग?
Reviewed by naresh
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Wednesday, February 22, 2012
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