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जानिये स्पेस सूट के बारे में


किसी मिनी रॉकेट से कम नहीं होती अंतरिक्ष यात्रियों की भारी-भरकम पोशाक। आओ जानें क्या होता है इसके अंदर
अंतरिक्ष पर आधारित हॉलीवुड फिल्मों और अंतरिक्ष अभियान से जुड़ी वास्तविक तस्वीरों में तुमने स्पेस सूट जरूर देखा होगा। क्या तुमने कभी इस बारे में सोचा है कि इसको पहनने के बाद अंतरिक्ष यात्री इतने फूले-फूले से क्यों दिखते हैं? स्पेस सूट कोई यूनिफॉर्म नहीं है, बल्कि यह खुद में एक बहुत छोटे अंतरिक्ष यान जैसा वैज्ञानिक उपकरण है। इसके अंदर कंप्यूटर, एअरकंडीशनिग, ऑक्सीजन, पीने के पानी और यहा तक कि इनबिल्ट टॉयलेट की भी व्यवस्था होती है। इतना ही नहीं, अंतरिक्ष यान से बाहर निकलकर अध्ययन अथवा अंतरिक्ष यान की मरम्मत का काम करते हुए स्पेस सूट एक रॉकेट पॉवर्ड बैकपैक से जुड़े होते हैं ताकि अंतरिक्ष यात्री आसानी से उड़ान भर सकें। सभी स्पेस सूट हवा से भरे होते हैं ताकि शरीर पर अंतरिक्ष की परिस्थितियों का बुरा असर न पड़े। यही वजह है कि इन्हें पहनने के बाद अंतरिक्ष यात्री फूले हुए और बेडौल नजर आते हैं।
खतरनाक माहौल से हिफाजत
अब तुम यह जरूर जानना चाहोगे कि भला अंतरिक्ष में ऐसी कौन सी परिस्थितिया होती हैं, जिनकी वजह से अंतरिक्ष यात्रियों को ऐसी पोशाक पहननी पड़ती है? पहली बात तो यह कि वहा पर हवा नहीं है और अगर वहा आदमी खुले माहौल में रहे तो ऑक्सीजन के अभाव में 15 सेकेंड में ही बेहोशी और इसके बाद मौत तक हो सकती है। अंतरिक्ष में तापमान बहुत नाटकीय ढंग से बदलता है। अगर सूर्य तुम्हारे सामने हो तो वातावरण का तापमान 120 डिग्री सेल्सियस के ऊपर हो सकता है और छाया में यही तापमान तुरंत गिरकर शून्य से 100 डिग्री सेल्सियस नीचे तक पहुंच जाता है। ऐसी हालत में शरीर और इसके आतरिक द्रव उबलने लगते हैं अथवा जम जाते हैं। इसी के साथ [क्योंकि वहा हवा नहीं है] हमारा शरीर बिना किसी सुरक्षा पर्त के सीधे सूरज और अन्य अंतरिक्ष पिडों से निकलने वाले खतरनाक रेडिएशन के सपर्क में आता है। इससे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों से ग्रस्त होने का डर रहता है।
पायलटों के लिए हुई ईजाद
स्पेस सूट की ईजाद लगभग 80 साल पहले हुई थी और इसे उन फौजी पायलटों के लिए बनाया गया था, जो आकाश में बहुत ऊंचाई पर वायुयान ले जाते थे। पायलट जितना ऊंचा उड़ते थे, हवा उतनी ही हल्की होती जाती थी और इसलिए उन्हें सास लेने तथा शरीर को सपोर्ट देने के लिए खास पोशाक की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद 50 और 60 के दशक में अमेरिका तथा तत्कालीन सोवियत सघ में अंतरिक्ष की होड़ शुरू हुई तो और बेहतर स्पेस सूट बनने लगे। अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसधान सस्था 'नासा' ने 'मरकरी स्पेस मिशन' के लिए जो पहला स्पेस सूट बनाया था, वह चादी के रंग का था। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का मानना था कि इससे सूरज की घातक किरणें पलट जाएंगी। नासा के 'जैमिनी मिशन' के दौरान स्पेस सूट और बेहतर तथा नवीनतम टेक्नोलॉजी से लैस हुए। वजह यह थी कि अब अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष यान से बाहर निकलकर अध्ययन भी करने थे। स्पेस सूट के विकास में सबसे बड़ी छलाग अमेरिका के 'अपोलो मिशन' को माना जाता है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री चाद की सतह पर उतरे थे। इस उद्देश्य के लिए अपोलो स्पेस सूट में एक बड़ा बैकपैक शामिल किया गया था, जिसमें 8 घटे तक काम करने के लिए बैट्री, हवा और पानी का इंतजाम था।
धरती से अंतरिक्ष का नजारा !
आधुनिक अंतरिक्ष तकनीक ने अंतरिक्ष यात्रियों की जिंदगी एक और तरीके से भी काफी आसान कर दी है। अब उन्हें स्पेस शटल अथवा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के अंदर काम करते हुए पहले के अंतरिक्ष यात्रियों की तरह भारी-भरकम स्पेस सूट नहीं पहनने पड़ते। वे वहा साधारण ओवरऑल अथवा घरेलू कपड़ों तक में रह सकते हैं, लेकिन अगर बाहर निकलना हो तो स्पेस सूट के बिना काम नहीं चल सकता..वजह है वही खतरनाक परिस्थितिया, जिनका जिक्र हमने शुरुआत में किया था। अपोलो की तुलना में आधुनिक स्पेस सूट कई गुना एडवास हैं। आज किसी स्पेस सूट में कम से कम 24 छोटी रॉकेट मोटर्स लगी होती हैं, जिनकी सहायता से अंतरिक्ष यान के बाहर काफी लबे समय तक 'उड़ा' जा सकता है। हा भोलूराम, आज के स्पेस सूट किसी मिनी रॉकेट की तरह ही शक्तिशाली होते हैं, जिनका कमाड सीधे अंतरिक्ष यात्री के हाथ में होता है। स्पेस सूट में लगे हेलमेट में बेहद शक्तिशाली कैमरा लगा होता है, जिससे धरती पर बैठे अंतरिक्ष वैज्ञानिक तक यह देख पाते हैं कि सुदूर अंतरिक्ष में तैरता हुआ अंतरिक्ष यात्री आखिर क्या चीज देख रहा है। अंतरिक्ष यान से बाहर काम करने की इस घटना को ईवीए [एक्स्ट्रा वेहिकुलर एक्टिविटी] कहा जाता है।
हेलमेट में दो शीशे
स्पेस सूट से जुड़े हेलमेट में दो शीशे होते हैं। बाहर वाला अंतरिक्ष में सूरज की चकाचौंध से आखों की हिफाजत करता है तो अंदर वाला हवा को रोक कर रखता है। हेलमेट के नीचे भी अंतरिक्ष यात्री एक कैप पहनते हैं। 'स्नूपी कैप' कहलाने वाली इस टोपी में आपस में बातचीत करने के लिए माइक्रोफोन और स्पीकर फिट होते हैं।
क्यों होते है दो रंग
अब अंतरिक्ष में पहने जाने वाले स्पेस सूट सफेद और अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरने और वापस लौटने पर पहने जाने वाले स्पेस सूट नारंगी रंग के होते हैं..पता है क्यों? ताकि अगर लाचिग/लैंडिंग के दौरान कोई दुर्घटना हो जाए तो आकाश से पैराशूट के सहारे कूद कर जान बचाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों की तलाश आसानी से की जा सके!
मिशन पैच
हर अंतरिक्ष अभियान के लिए अंतरिक्ष यात्रियों के सूट पर खास किस्म के लोगो लगे होते हैं। इन्हें 'मिशन पैच' कहते हैं। इस लोगो पर मिशन का प्रतीक, अंतरिक्ष यान और यात्री का नाम लिखा होता है।
स्पेस सूट की लागत
..जरा अंदाज लगाओ कि भला कितने का बनता होगा एक स्पेस सूट? भारतीय रुपयों में इसकी कीमत लगभग 4 करोड़ 80 लाख रुपए से ऊपर बैठती है। इसे पहनना भी कम मशक्कत का काम नहीं। इसे ढंग से पहनने और सभी चीजों को जाचने में एक से डेढ़ घटे का वक्त लगता है।
जानिये स्पेस सूट के बारे में जानिये स्पेस सूट के बारे में Reviewed by naresh on Sunday, February 19, 2012 Rating: 5

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