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आज की कहानी "कैक्टस"

एक बार ली बात है! बहुत ही खड़ूस सी दिखने वाली पड़ोस की एक बूढ़ी आंटी जिनके गुस्से और नकचडेपन से पूरा मोहल्ला डरता था | हाथ में भारी भारी दो थैले लिए धीरे-धीरे हाँफती चली आ रही थी | मुझसे देख कर रहा ना गया मैंने भागकर आंटी से कहां मैं ले चलता हूं आप के बैग ! उन्होंने बड़ी नफरत और गुस्से से मुझे देखते हुए कहा कौन हो तुम मुझे नहीं चाहिए किसी की मदद | थोड़ा आगे बढ़ी और फिर रुक कर लंबी लंबी सांसे लेने लगी
मैंने झट उनके बैग छिने और दौड़कर उनके गेट तक पहुंच गया कुछ बडबडाती हुई ताला खोल कर सोफे पर धम्म से गिर गई ! मैं भागकर ठंडे पानी की बोतल ले आया और गिलास भरकर उन्हें पीने को दिया और बिना कुछ कहे बाहर आ गया |
कुछ दिन बाद वह पौधों में पानी दे रही थी जब मैं उधर से गुजरा | मुझे देखकर इशारे से बुलाया और बढ़ी तल्खी से पूछा कहां रहते हो क्या नाम है? मैंने बड़ी हिम्मत करके बताया सामने वाली कोठी में सर्वेंट क्वार्टर में रहता हूं , अनाथ हूं दीपक नाम है कहकर साइकिल से दौड़कर बाजार पहुंच गया और रुक कर माथे पर आया पसीना पहुंचने लगा |
अगली सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई तो देख कर हैरान हो गया कई बार पलकें झपकाईं पर यकीन ही नहीं हुआ खडूस आंटी हाथ में टिफिन लिए खड़ी थी , बोली आज कढ़ी चावल बनाए थे सोचा तुम्हें दे आंऊ खा लेना और धीरे-धीरे वापस चली गई मैं मुंह खोले उन्हें देखता रहा और सोचता रहा यह क्या हो रहा है मेरे साथ यह खडूस आंटी मुझ पर इतनी मेहरबान कैसे हो गई यह तो किसी से बात ही नहीं करती ! 2 दिन तक आंटी नजर नहीं आई तो सोचा टिफिन देने के बहाने देखूं आंटी को कुछ हो तो नहीं गया कहीं बीमार तो नहीं है ! थोड़ी देर डोरबेल बजाई तो गुस्से में दनदनाती गालियों की बौछार करती आंटी ने दरवाजा खोला मैंने चुपचाप टिफिन आगे कर दिया वह बिना कुछ बोले टिफिन लेकर मोड़ गई आज उनकी आंखों में मेरे लिए नफरत और गुस्सा नहीं था | जैसे ही मैं गेट तक पहुंचा उनकी आवाज आई रुक जा और मैं डरा डरा देखने लगा वो पास आकर बोली शाम को खीर बनाऊंगी टाइम निकाल कर आ जाना मैं सकते में आ गया और वह मुड़कर अंदर चली गई ! मैंने सोचा उनका पल्ला पकड़ कर देखूं मां का आंचल क्या इतना नरम होता है शायद मेरी मां होती तो वह भी इन जैसी ही होती और आंखों से आंसू बहने लगे उस ममतामई कठोर मूर्ति को देख कर जैसे संगमरमर की मंदिर में रखी खामोश मूर्ति हो | फिर यूं ही दौर चल पड़ा जब भी वह कुछ बनाती मुझे खिलाए बगैर ना खाती | एक दिन अपना दर्द मुझे बताया कि वो इतनी कठोर कैसे हो गई थी , पति से प्रेम विवाह किया था शादी के 2 साल बाद लड़ाई में शहीद हो गए थे एक 8 महीने का बेटा छोड़कर ! बड़ी कठिनाई से पाल पोस कर बड़ा किया और पायलट बनाया वो भी एक एयर क्रैश में मारा गया | जीवन के कड़वे अनुभवों और अकेली औरत का समाज में जीवित रहना तभी हो पाया जब उन्होंने नफरत के कांटे अपने चारों ओर को गाली वरना कब के वहशी दरिंदे उसे और उसके अंदर की कोमल नारी को नोच चुके होते | आज आंटी कैक्टस की तरह लग रही थी🌵 जो रेगिस्तान की सूखी रेत में भी हरा-भरा रहता है अपने तने में पानी को सोख कर ऐसे ही आंटी के कठोर व्यक्तित्व में कोमल दिल छुपा हुआ था | काश एक नारी एक मां को अपने आप को बचाने के लिए कैक्टस की तरह अपने चारों ओर नफरत का आवरण ना लगाना पड़े उसे जीने का हक है | हर बेटे भाई के संस्कार उसे नारी का सम्मान करना सिखाए | हर औरत एक मां है एक बहन है सिर्फ एक जिसम नहीं जिसे जब चाहे नोचा जाए | नारी के कोमल मन की ममता को प्यार से सीचा जाए ना की कैक्टस की तरह जीने पर मजबूर किया जाए!!

आज की कहानी "कैक्टस" आज की कहानी  "कैक्टस" Reviewed by naresh on Tuesday, June 16, 2020 Rating: 5

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