तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यों है ,
कहीं पर जख़म तो कहीं पर पीठ में खंजर क्यों है।
सुना है तु हर जर्रे में रह्ता है ,
तो फिर जमीं पर कहीं मस्जिद , कहीं पर मंदिर क्यों है।
जब रहने वाले इस दुनिया में तेरे ही बंदे हैं ,
तो फिर कोई किसी का दोस्त, किसी का दुशमन क्यों है।
तू ही लिखता है सब लोगों का मुकद्दर
तो फिर कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यों है।
तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यों है ,
कहीं पर जख़म तो कहीं पर पीठ में खंजर क्यों है।
कहीं पर जख़म तो कहीं पर पीठ में खंजर क्यों है।
सुना है तु हर जर्रे में रह्ता है ,
तो फिर जमीं पर कहीं मस्जिद , कहीं पर मंदिर क्यों है।
जब रहने वाले इस दुनिया में तेरे ही बंदे हैं ,
तो फिर कोई किसी का दोस्त, किसी का दुशमन क्यों है।
तू ही लिखता है सब लोगों का मुकद्दर
तो फिर कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यों है।
तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यों है ,
कहीं पर जख़म तो कहीं पर पीठ में खंजर क्यों है।
पूछे कोई भगवान से
Reviewed by naresh
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Monday, March 12, 2012
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