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हिंसा शांतिपूर्ण आन्दोलन का पर्याय नहीं हो सकता


हिंसा शांतिपूर्ण आन्दोलन का पर्याय नहीं हो सकता


एक जवान हरविंदर सिंह ने शरद पवार, कृषि मंत्री, भारत सरकार के मुंह पर थप्पड़ मारा और लोगों में हल्ला गुल्ला मच गया. किसी ने मुझ से पूछा शरद पवार के मुंह पर एक जवान ने एक थप्पड़ मारा, मैंने कहा एक ही थप्पड़ मारा? और प्रत्यक्ष थप्पड़ मारने वाले से “एक ही थप्पड़ मारा”  कहने वाले को कई लोगों ने अधिक अपराधी माना.
मैंने कई बार ये कहा है कि, अन्ना हजारे कि तुलना महात्मा गाँधी जी से करना ठीक नहीं है. गाँधी जी के पास बैठने की भी मेरी पात्रता नहीं है. लेकिन उनके विचारों का थोड़ा सा प्रभाव मेरे जीवन में पड़ने के कारण देश की उन्नति के लिए ग्राम विकास और अहिंसात्मक संघर्ष जैसा थोडा सा कार्य मैं कर पाया.
मैंने ये भी कहा था कि मैं महात्मा गाँधी जी के आदर्श को मानता हूँ लेकिन कभी-कभी छत्रपति शिवाजी महाराज का भी आदर्श सामने रखता हूँ. मैं किसी पर तलवार से वार नहीं करना चाहता, किसी पर शस्त्र नहीं चलाना चाहिए, किसी से हाथापाई नहीं करना चाहिए. लेकिन किसी को कठोर शब्द प्रयोग करना इस बात को भी महात्मा गाँधी जी ने हिंसा कहा हैं.
समाज और देश कि भलाई के लिए कठोर शब्द की हिंसा मैं बार बार कई सालों से करता आया हूँ. एक ही थप्पड़ मारा? ये मेरी हिंसा हो गई थी. लेकिन समाज कि भलाई के लिए ऐसी हिंसा करने को मैं दोष नहीं मानता. राजनीति में कई लोगों को थप्पड़ मारने का बहुत बुरा लग गया था. कईयों को गुस्सा भी आ गया था. लेकिन उस जवान ने थप्पड़ क्यों मारा था? इस बात को भी सोचना जरुरी था.
आज दिन ब दिन भ्रष्टाचार बढता जा रहा है. इस भ्रष्टाचार से सामान्य लोगों का जीना मुश्किल हो गया है. बढते भ्रष्टाचार के कारण मंहगाई बढती जा रही है. उस कारण परिवारिक लोगों को परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. जब सहनशीलता की मर्यादा का अंत होता है तो कुछ लोग कानून को हाथ में लेकर ऐसे कृत्य करते है. इस जवान ने जो किया है वो गलत किया है. इस पर किसी को भी दो राय नहीं है. मैंने भी निषेध किया है. लेकिन थप्पड़ क्यों मारा इस बात को सोचने की जरुरत है. एक थप्पड़ लगने से राजनीति में लोगों को गुस्सा आ गया. लेकिन जब सरकार किसान पर उनका दोष न होते हुए वह जब अपना हक मांगते हैं. तब सरकार लाठी चार्ज करती है. कई किसान घायल होते है. कई बार सरकार गोलियां चलाती है. उसमें कई किसानों की मृत्यु भी हो जाती है. लेकिन कृषि प्रधान भारत देश में उस पर किसी को गुस्सा नहीं आता. यह दुर्भाग्य की बात है. महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याएं करते हैं, उस पर किसी राजनेता को गुस्सा नहीं आता? यह दुर्भाग्य की बात है.
१९८९ में महाराष्ट्र में बिजली संकट का निर्माण हुआ था. किसानों के इलेक्ट्रिक पम्प के लिए वोल्टेज नहीं मिल रही थी. किसानों की फसल जल रही थी,  कम पावर (वोल्टेज) के कारण किसानों के इलेक्ट्रिक पम्प जल रहे थे. डी.पी. जल रही थी, बिजली में सुधार लाने के लिए मैंने तीन चार साल प्रयास किया. सरकार बिजली सुधार के लिए आश्वासन देती रही लेकिन कोई फर्क नहीं आया. इसलिए मैंने अनशन-आन्दोलन शुरू किया था. आठ दिन के बाद मुझे सरकार जबरन सरकारी हॉस्पिटल में ले गयी और मुझे हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया.
उस कारण सरकार के प्रति किसानों के दिल में गुस्सा निर्माण हो गया. उन्होंने अहमदनगर जिले में वाडेगव्हन गाँव के पास रास्ता रोको आन्दोलन किया और सरकार ने किसानों के उस आन्दोलन पर गोली चलाई. चार किसान मृत्यु मुखी पड़ गए, कई लोग घायल हो गए. उस समय शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री थे. लेकिन किसी भी राजनेता को उस पर गुस्सा नहीं आया था. उस आन्दोलन को आज २२ साल बीत गए हैं. लेकिन बिजली का संकट आज भी कायम है, समाप्त नहीं हुआ.
केंद्र में शरद पवार कृषि मंत्री और राज्य में बिजली मंत्री भी उन्ही का है. फिर भी २२ साल हो गए. आज किसानों के इलेक्ट्रिक पम्प को वोल्टेज पुरे नहीं मिलने के कारण जलते हैं, फसल जलती है, डी.पी. जलती है. उस पर गुस्सा किसी राजनेता को नहीं आता है. यह दुर्भाग्य की बात है. पुणे के पास मावल में किसानों ने आन्दोलन किया उस आन्दोलन पर गोली चलाई गई तीन (३) किसानों की म्रत्यु हो गई. राजनेता को गुस्सा नहीं आया.
कृषि मंत्री के नाते शरद पवार करोड़ों रुपयों का सडा-फुड़ा गेहूं आयात किया और जनता को खाने के लायक न होने के कारण जे.सी.बी. से बड़े-बड़े गड्डे करके ज़मीं में दफनाया गया. और देश के जनता के करोड़ो रुपयों का चुना लगाया. लेकिन उसका गुस्सा किसी भी राजनेता को नहीं आया? शरद पवार जी के एक रिश्तेदार पदमसिंह पाटिल जो शरद पवार के मंत्रिमंडल में मंत्री रहकर भ्रष्टाचार किया था. मैं जाँच करने का आग्रह किया. लेकिन जाँच नहीं हो रही थी. मैं आन्दोलन किया और उस मंत्री की जाँच हो गई. मंत्री दोषी पाया गया और उनको मंत्रीमंडल से निकलना पड़ा. उसका बदला लेने के लिए इस मंत्री ने मेरी हत्या करने के लिए तीस (३०) लाख रूपये की सुपारी दी थी. लेकिन मरने वाला जब पकड़ा गया तो उसने न्यायाधीश के सामने कबूल किया कि अन्ना हजारे को मारने की मुझे इस मंत्री ने सुपारी दी थी. उस कारण मंत्री को जेल जाना पड़ा. उस वक़्त किसी भी राजनेता को गुस्सा नहीं आया. जितना शरद पवार को एक थप्पड़ मारने का गुस्सा आ गया? विशेषतः पदमसिंह पाटिल भ्रष्टाचारी है, यह साबित हुआ था, मुझे मारने की सुपारी दी थी यह भी स्पष्ट हो गया था. फिर भी चुनाव के समय शरद पवार उनके कार्यक्रम में जाकर जनता को अपील किया था कि सभी कार्यकर्ताओं का पदमसिंह पाटिल का साथ देना है. भ्रष्टाचारी होते हुए शरद पवार उनको समर्थन करते है. लेकिन उस वक़्त भी राजनेताओं को को गुस्सा नहीं आया? इस लिए मैंने कहा था कि, भ्रष्टाचारियों को साथ में लेकर जाने कि शरद पवार की पुरानी आदत हैं. कई राजनेताओं को एक थप्पड़ का गुस्सा आकर कई बसें जलाकर राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान किया, कई दुकानें तोड़ फोड़ कर दी, कई निजी वाहनों को नुकसान पहुँचाया. इस बात पर किसी को गुस्सा नहीं आया. यह दुर्भाग्य की बात है.
हजारों कार्यकर्ताओं के साथ २० साल से हम आन्दोलन कर रहे है, लेकिन आज तक किसी भी राष्ट्रीय सम्पति का नुकसान नहीं होने दिया. किसी व्यक्ति की सम्पति का नुकसान नहीं होने दिया. दिनाक १६ अगस्त २०११ को देश के करोडो लोग रास्ते पर आ गए थे लेकिन किसी व्यक्ति ने एक पत्थर भी हाथ में नहीं उठाया. आन्दोलन करना दोष नहीं, लेकिन अहिंसा के मार्ग से आन्दोलन होना जरुरी है. राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान कर हम अपना ही नुकसान करते है. यह आन्दोलनकारियों की भावना होनी चाहिए. जो लोग महात्मा गाँधी जी के समाधि पर प्रार्थना करने गए थे. उन्हें इस बात को सोचना ज़रूरी है. भ्रष्टाचार किया स्पष्ट हो गया और पदमसिंह पाटिल जैसा आदमी जेल में भी गया ऐसा व्यक्ति प्रार्थना करता है?
१९९१/९२ में शरद पवार मुख्यमंत्री थे और वन विभाग के उच्च स्तर के अफसरों ने मिलकर बहुत बड़ा भ्रष्टाचार किया था. उनके सबूत मेरे हाथ में आये थे, मैं सबूत के साथ शरद पवार को बताया, सब सबूत है. इन अफसरों की जाँच करके उन पर कठोर कार्यवाही करें. लेकिन उनकी जाँच नहीं हुई. मैं लगातार दो साल कोशिश करता रहा. आखिर मैंने, राजीव गाँधी जी ने मुझे इंदिरा गाँधी वृक्षमित्र अवार्ड दिया था उसको वापस कर दिया. फिर भी शरद पवार ने उन पर कोई कार्यवाही नहीं की. आखिर मैंने, राष्ट्रपति ने मुझे पद्मश्री अवार्ड दिया था वह भी राष्ट्रपति जी को वापस कर दिया तब सरकार की नींद खुली और उन अफसरों की जाँच हुई और उन पर कार्यवाही करनी पड़ी. उस वक़्त गो.रा. खैरनार और हमारे आन्दोलन से सरकार गिर गई थी. महाराष्ट्र में पचास सालों में हजारों एकड़ वन जमीन गायब हुई है. उसके लिए शरद पवार ज़िम्मेदार है. मैं तीन साल से गायब ज़मीन की जाँच करने की मांग कर रहा हूँ. लेकिन जाँच नहीं हो रही है. अगर जाँच हो गई तो कौन ज़िम्मेदार है स्पष्ट हो जायेगा.
इस से पता चलता है की भ्रष्टाचारी लोगों को संभालने की शरद पवार को बहुत पुरानी आदत है. सन २००३ में शरद पवार के चार मंत्रियों ने भ्रष्टाचार किया था. उनके भ्रष्टाचार के सब सबूत मेरे हाथ में आये थे. मैंने आग्रह किया कि इन चार मंत्रियों के भ्रष्टाचार की जाँच करो. लेकिन सरकार जाँच करने को तैयार नहीं थी. मुझे आन्दोलन करना पड़ा. मैंने राष्ट्रपति को पद्मभूषण अवार्ड को वापस करने का नोटिस दिया था. जब उन मंत्रियों की जाँच करने को सरकार राज़ी ही गई. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पी.बी.सावंत आयोग की नियुक्ति हो गई. एक मंत्री ने हमारे बारे में भी शिकायत की और मंत्रियों के साथ साथ अन्ना हजारे की भी जाँच करने का आग्रह किया. मैं उसको मेरी और हमारे संस्था की जाँच की अनुमति दी, जब कर नहीं तो डर किस लिए?
चार मंत्रियों के लिए किसके लिए कौन वकील देना इसका नियोजन इन्ही से हुआ था. न्यायाधीश पी.बी. सावंत आयोग का कामकाज तारीख २१.१०.२००३ से शुरू हो गया. हर दिन सवेरे ११ बजे से शाम ५ बजे तक चलता रहा. एक साल दो महीने बाद तारीख २४.१२.२००३ को आयोग का कामकाज पूरा हो गया और आयोग की तरफ से अपनी रिपोर्ट सरकार को तारीख २३.०२.२००५ को भेज दिया. उस रिपोर्ट में चार मंत्रियों में से तीन मंत्रियों ने भ्रष्टाचार किया यह स्पष्ट हो गया. हमारे बारे मंत्रियों ने आयोग को बताया था कि अन्ना के सभी संस्थाओं के कुछ कागज लेने कि हमें अनुमति मिले. आयोग ने हमे पूछा मंत्री आपके संस्था के सभी कागज रालेगन सिद्धी में जाकर लेना चाहते हैं, तो हमने तुरंत अनुमति दी. मंत्रियों के तरफ से ६ सी.ए. (चार्टर्ड अकाउंटैंट) ६ दिन तक हमारी संस्था कि छानबीन करके आधा टेम्पो कागज फोटोकॉपी करके ले गए. उनका खाना, रहना सब इंतजाम रालेगन सिद्धी में हमारी संस्था ने किया था. लेकिन हमारा १०० रूपये का भी  भ्रष्टाचार नहीं मिला. सिर्फ कागज समय पर नहीं भेजा, इतनी ही अनियमितता का दोष था. लेकिन उनको भ्रष्टाचार नहीं मिला और शरद पवार टीम का मैं दोषी है, मुझे जेल भेजने का सपना अधूरा ही रह गया. उनको लगता था अन्ना हजारे दोषी पाए जायेंगे और जेल जायेंगे. लेकिन तीन मंत्रियों को रिपोर्ट में भ्रष्टाचार स्पष्ट होने के कारण अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. मैं ५-६ सालों से सरकार को बार-बार कह रहा हूँ कि सावंत आयोग ने जिन मंत्रियों को भ्रष्टाचार के कारण दोषी पाया. उन पर क़ानूनी कार्यवाही की जाये. सरकार अभी भी उन पर क़ानूनी कार्यवाही करने को तैयार नहीं है. कारण वह शरद पवार जी के मंत्री है.
जनलोकपाल कानून आने के बाद इन मंत्रियों पर कार्यवाही करने के लिया आन्दोलन करना पड़ेगा. कारण कई बार इन मंत्रियों पर कार्यवाही करने के लिए मैं राज्य के मुख्यमंत्री को ख़त भेजे हैं. भ्रष्टाचारियों को संभालने की आदत बहुत पुरानी है. क्या होगा इस राज्य का? इस देश का? प्रश्न है विशेषत: ऐसे भ्रष्टाचारी मंत्री गाँधी जी की समाधि पर थप्पड़ मरने वाली को सद्बुद्धि मांग रहे है. मैं गाँव में संत यादव बाबा के मंदिर में रहता हूँ. सोने का एक बिस्तर खाने की एक थाली के आलावा कुछ नहीं रखा. करोड़ों रुपयें की योजनाएं अपनायीं लेकिन आज तक किसी बैंक में बैलेंस नहीं रखा. अपना पूरा जीवन समाज और देश की सेवा के लिए अर्पण ऐसे स्थिति में शरद पवार के कई मंत्रियों ने मेरे ऊपर अलग जगह पर कोर्ट में दावे लगाये हुए है. मेरे पास केस चलने के लिए पैसा नहीं है. ९/१० वकीलों ने एक रुपया न लेते हुए सात साल से केस लड़ रहे हैं. आज भी कोर्ट में केस चल रहे है और मुझे कोर्ट में हाजिर रहना पड़ता है. फकीर होने के कारण मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता हैं. जनता की सेवा और देश की सेवा में आनंद मिलता है. इस कारण दुःख महसूस होता नहीं.
एक थप्पड़ का गुस्सा कई लोगों को आया लेकिन पूरा जीवन समाज और देश के लिए अर्पण करते हुए इतनी तकलीफ दी जाती है. उसका गुस्सा किसी को नहीं आता. यह दुर्भाग्य की बात है. मेरी विनती है, मुझ पर गुस्सा आता है तो जैसे मेरे पुतले जलाये है. आगे भी जलाते रहो. मेरी प्रेतयात्रा निकालो, मेरी बदनामी के लिए चाहे जैसा करो. लेकिन राष्ट्र संपत्ति का कभी भी नुकसान मत करो. वह हमारी सब की संपत्ति समझ कर उसका जतन करो. शरद पवार के कार्यकर्ताओं ने मुझे माँ-बहन की गाली दिया है. उसका मैंने मेरे समाधान के लिए रिकॉर्ड (सीडी) करके रखा है. समय आने पर मैं जनता को बजाकर सुनाऊंगा. जब जब वह रिकॉर्ड मैं सुनूंगा तब मुझे और समाधान मिलेगा. इसलिए और भी गाली देना है तो दे दो मुझे गाली देने से दुःख नहीं होगा, लेकिन राष्ट्रीय सम्पति की हानि नहीं करना इससे मुझे बहुत दुःख होगा.
कि.बा. उपनाम अण्णा हज़ारे
हिंसा शांतिपूर्ण आन्दोलन का पर्याय नहीं हो सकता हिंसा शांतिपूर्ण आन्दोलन का पर्याय नहीं हो सकता Reviewed by naresh on Wednesday, December 07, 2011 Rating: 5

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